Tuesday, 17 May 2016

मन और शरीर



मन और शरीर 
शरीर और मन का आपस में गहरा संबंध होता है । स्वस्थ शरीर में स्वस्थ में मन का वास होता है । यह एक चिंतन है । इन दोनों के योग से निष्पति यह आती है कि शरीर और मन की स्वस्थता एक दूसरे को प्रभावित करती है । मन की परेशानी व्यक्ति को अस्वस्थ बना देती है । इसी प्रकार कोइ भी रोग व कष्ट मनुष्य के मन को बेचैन कर देता है । मनुष्य का मन ही उसे बांधता है और उसका वही मन उसे मुक्त भी करता है ।यदि इस बात को मान लिया जाए तो मनुष्य के विकास का और उसके नुकसान का दायित्व मन पर आ जाता है।ऐसी स्थिति मेंस्वास्थ्य और अस्वस्थ्यता की जिम्मेदारी से भी मन की है ।जैन धर्म के अनुसार शरीर में पाॅंच.इंन्द्रियों का स्थान है, वैसे ही मन का स्थान संचालक का हैऔर वह इंन्द्रियों को संचालित करता है ।बिना पंख के मन दूर..दूर तक उडान भरता है । जहाॅं तक वहीे पहुॅंच जाता है।इसके चंचल स्वभाव को देखते हुए इस पर नियंत्रण रखना उचित है । मन के बारे में एक नइ्र्र धारणा यह बनी हैकि चंचलता मन का स्वभाव नहीं है ।इसको चंचल बनाने वाली है, मनुष्य की वृत्तियाॅं । जैसे दर्पण में जो प्रतिबिम्ब आते है , वे दर्पण के अपने नहीं होते उसके सामने जो भी छवि आती हैउसमें नजर आने लगती है । मन की चंचलता तो जग प्रसिद्ध है उसे जितना स्थिर करने का प्रयास किया जाता है उतना ही वह भगता है ।कुछ ही लोग इसे नियंत्रित कर पाते हैं ।इसे अनुशासन में रखना बहुत ही आवश्यक है । इसका गुलाम नहीें होना चाहिए । जब तक व्यक्ति मन की गुलामी से मुक्त नहीं होगा , वह स्वस्थ नहीं रह पाएगा । इसके लिए कबीर जी ने कहा है..........
      मन के हारे हार है.....मन के जीते जीत 
****   BE A MASTER, NOT A SLAVE.       ****

BE A MASTER OVER CIRCUMSTANCES ,
 PASSIONS , DESIRES AND ANIMAL APPETITES.

THEREFORE , LEARN SELF- CONTROL.****


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