लबों पर जब भी तुम्हारा जिक्र हुआ।
मन का कोना-कोना खिल उठा।
उमंगे लहराने लगती है।
चेहरा दमकने लगता है।
आंखें उल्लास से चमकने लगती है।
चारों ओर खुशियां बिखर जाती है।
लबों पर जब भी तुम्हारा जिक्र हुआ।
मन का कोना-कोना खिल उठा ।
तुम आंखों की शरारत भी हो।
आंखों की मादकता भी तुम हो।
चेहरे का लुभावना आकर्षण हो तुम
लबों पर जब भी तुम्हारा जिक्र हुआ।
मन का कोना-कोना खिल उठा।
तुम परायों को भी अपना बना लेती हो
हर मुश्किल को आसान बना देती हो
साहस को भी तुम बढ़ाती हो
मंजिलों को सरल बनाती हो
लबों पर जब भी तुम्हारा जिक्र हुआ।
मन का कोना-कोना खिल उठा।
MERI NAZAR SE...
Asha Sharma.
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