कविता खुशियाॅं लेखिका . आशा शर्मा
जीवन चलता रहा ,खुशियाॅं आती रही ।।
बच्चों के बढने पर ,बच्चों के हंसने पर,
उनके आने की दस्तक, उनके खिलखिलाने की चाहत,
उनके क्षितिज को छूने की चाहत, उनकी निर्भिकता,
अपनी जिम्मेदारियों को निभाते. निभाते.,
जीवन चलता रहा ,खुशियाॅं आती रही ।।
एक के बाद एक ,कदम उनका बढता था,
मेरा होंसला , मेरा विश्वास खिलता था,
मैं चहकती थी, मैं महकती थी,
दुनिया को अपनी ही, निगाहों से परखती थी
जीवन चलता रहा ,खुशियाॅं आती रही ।।
आज खुशियों का ,आॅंचल व कद और बढा,
जब मैंने अपने आॅंगन के साथ, दुनिया को भी निहारा,
उनकी मंजिलों को पाने की खुशी, को अपने मन में ही पाया,
जब मैंने सबको अपना ही माना,
एक नइ्र्र मंजिल की तलाश में मैं निकली,
जीवन चलता रहा ,खुशियाॅं आती रही ।।
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