Tuesday, 10 September 2019

सपने


सपने
बचपन में जब भी ,आंखें बंद मैं करती थी
न जाने कितने ही , रंग बिरंगे मोती
आंखों में जुगनुओं की,तरह दमकने लगतेथे।
मैं तब हैरान होती,खुशी से पशेमां होती।
पर समझ नहीं पाती,उन रंगीन रंगों का मतलब।
बचपन में जब भी , आंखें बंद मैं करती थी।।
धीरे-धीरे वो रंग , न जाने कहां खो गये।
बड़े हुए तो जाना,वो तो मेरे सपने थे।
वो कहीं गये नहीं, वो तो मेरे अपने थे।
तब से उन सपनों को ,जीने लगी मैं।
बचपन में जब भी, आंखें बंद मैं करती थी।।
जीवन पथ की ,डगर पर चलने लगी मैं।
न थकी, न रुकी, न थमी , न डरी मैं।
न ही पीछे मुड़कर,उस पगडंडी को देखा मैंने
मीलों चला मैंने, बिना डरे, बिना झुके।
उत्साह कम नहीं है, सांझ अभी आई नहीं।
बचपन की लड़ियां,अब भी रोशनी।
देती हैं मुझे, रंगीन सितारों की तरह।
बचपन में जब भी, आंखें बंद मैं करती थी।।
Meri Nazar se.....                  

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