Sunday, 5 April 2020

थिरकते कदम

थिरकते कदम
थिरकते कदमों को  थामा क्यों ए खुदा
मन की अशांति दे रही है क्यों हमें सजा
ए ईश्वर तुमने देनी  है सब को ये दुआ
रिश्तों में पनपने देना है ये विश्वास ए खुदा
माना की मानव भूल गया है मानवता
पर तूझ में तो  है अदम्य उदारता

थिरकते कदमों को  थामा क्यों ए खुदा
मन की अशांति दे रही है क्यों हमें सजा

क्षमा शील बन सदा बिखेर अपनी महानता
वो अज्ञानी  हैं तभी तो समझ नहीं पाते दिव्यता
हर मानव में रब है हर मानव में है खुदा
पर ज्ञानी तो हर मानव नहीं बन सका
मन की आंखें खोल ला मन में मानवता

थिरकते कदमों को  थामा क्यों ए खुदा
मन की अशांति दे रही है क्यों हमें सजा

पवित्र बन मानव से प्यार कर ला सांनिध्यता
ये जीवन है क्षणभंगुर ला इसमें मधुरता
ज्ञानरूपी मशाल तू  ले जला मन में
कभी भी न आएगी मन में कटुता
राहें तो मिलकर ही आसान होगी
तभी आएगी मन में प्रफूल्लता
और जीवन में लाएंगी  परिपूर्णता

थिरकते कदमों को  थामा क्यों ए खुदा
मन की अशांति दे रही है क्यों हमें सजा
Meri Nazar Se....

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