सफलता के रंग........
कुछ लोग तो सफलता के ,
मायने ही देते हैं बदल,
मायने ही देते हैं बदल,
वो सीढ़ी नहीं , कंधे हैं ढूंढते ,
वो मेहनत नहीं , रिश्ते हैं ढूंढते,
दिखावा ही कर्म है उनका,
परबल ही स्वप्न है उनका,
ज्ञान की जरूरत नहीं क्योंकि,
वो सीढ़ी नहीं कंधे ढूंढते हैं।
वो मेहनत नहीं , रिश्ते हैं ढूंढते,
दिखावा ही कर्म है उनका,
परबल ही स्वप्न है उनका,
ज्ञान की जरूरत नहीं क्योंकि,
वो सीढ़ी नहीं कंधे ढूंढते हैं।
आत्मसम्मान तो कोसों दूर है उनसे,
भाषा भी चीनी सी मीठी है,
दूसरों को प्रभावित करने वाले,
झूठ की चादर हैं ओढ़ते वो,
धर्म ईमान सब छलावा है क्योंकि,
वो सीढ़ी नहीं कंधे ढूंढते हैं।
भाषा भी चीनी सी मीठी है,
दूसरों को प्रभावित करने वाले,
झूठ की चादर हैं ओढ़ते वो,
धर्म ईमान सब छलावा है क्योंकि,
वो सीढ़ी नहीं कंधे ढूंढते हैं।
एक कंधा गिरा तो क्या,
दूसरे को ढूंढ ही लेते हैं,
किस्मत के धनी होते हैं,
मूर्ख लोगों को बना ही लेते हैं क्योंकि,
चतुराई से, छल से, दुनिया को
बदलने की ताकत वो रखते हैं क्योंकि,
वो सीढ़ी नहीं कंधे ढूंढते हैं।
दूसरे को ढूंढ ही लेते हैं,
किस्मत के धनी होते हैं,
मूर्ख लोगों को बना ही लेते हैं क्योंकि,
चतुराई से, छल से, दुनिया को
बदलने की ताकत वो रखते हैं क्योंकि,
वो सीढ़ी नहीं कंधे ढूंढते हैं।
सफलता के लिए सीढ़ी ढूंढ़ो,
कंधों की आवश्यकता ही क्यों है,
ज्ञानी को चाटूकारिता की जरूरत ही क्यों है,
दया वान को धर्म की जरूरत ही क्यों है,
सच को झूठ की जरूरत ही क्यों है,
बल वाले को छल की जरूरत ही क्यों है,
सच्चे लोगों को कंधों की जरूरत ही क्यों है।
कंधों की आवश्यकता ही क्यों है,
ज्ञानी को चाटूकारिता की जरूरत ही क्यों है,
दया वान को धर्म की जरूरत ही क्यों है,
सच को झूठ की जरूरत ही क्यों है,
बल वाले को छल की जरूरत ही क्यों है,
सच्चे लोगों को कंधों की जरूरत ही क्यों है।
Meri Nazar Se.....
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